चितावनी ( तन का बन्धन )
चितावनी ( तन का बन्धन ) चितावनी तन का बन्धन तन का बन्धन बड़ा भारी हैं । बड़ी गिरफ्तारी हैं। अजब पर्दा हैं। द्वारे जो इसमें हैं, बह भी बहिरमुख है और जो अन्तरमुख द्वारे हैं, उनके पट बन्द हैं। बज्र किवाड़ लगे हैं। इनका खोलना मुश्किल है। बड़ी भारी कैद हैं सुरत जो की कुल्ल मालिक की अंश है, वह इसमें आके फॅसी है और तन मन का रूप हो रहीं हैं मन जो कि जुगान जुग से सोया हुआ है, वह जब जागे तब अलबत्ता उसका निरवार हो सकता हैं। दे मदद बढ़ाव आगे । मन जुग जुग सोया जागे ।। चढ़ बंक चले त्रिकुटी में। फिर सुन्न तके सरवर में ।। जहाँ शोभा हंसन भारी। वह भूमि लगे अति प्यारी ।। (2) कैद में एक दो सुरत नहीं पड़ी है, अनन्त सुरतें आकर फॅसी हैं, बल्कि मण्डल कैद में पड़ा है। काल ने यह कैद लगाई है। जितनी इसकी रचना हैं, सब गिरफ्तार हैं। सत्तदेश का बासी जब यहाँ आवे और वहाँ का पता बतावे और साथ ले चले, तब अलबत्ता इस कैद से छुटकारा हो सकता हैं। वरना किसी की ता...