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चितावनी ( तन का बन्धन )

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             चितावनी   ( तन का बन्धन ) चितावनी तन का बन्धन तन का बन्धन बड़ा भारी हैं । बड़ी गिरफ्तारी हैं। अजब पर्दा हैं।  द्वारे जो इसमें हैं, बह भी बहिरमुख है और जो अन्तरमुख द्वारे हैं, उनके पट बन्द हैं। बज्र किवाड़ लगे हैं।  इनका खोलना मुश्किल है।  बड़ी भारी कैद हैं सुरत जो की कुल्ल मालिक की अंश है, वह इसमें आके फॅसी है और तन मन का रूप हो रहीं हैं मन जो कि जुगान जुग से सोया हुआ है, वह जब जागे तब अलबत्ता उसका निरवार हो सकता हैं।      दे मदद बढ़ाव आगे । मन जुग जुग सोया जागे ।। चढ़ बंक चले त्रिकुटी में। फिर सुन्न तके सरवर में  ।। जहाँ शोभा हंसन भारी। वह भूमि लगे अति प्यारी ।। (2)     कैद में  एक दो सुरत नहीं पड़ी है, अनन्त सुरतें आकर फॅसी हैं, बल्कि मण्डल कैद में पड़ा है।  काल ने यह कैद लगाई है।  जितनी इसकी रचना हैं, सब गिरफ्तार हैं।  सत्तदेश का बासी जब यहाँ आवे और वहाँ का पता बतावे और साथ ले चले, तब अलबत्ता इस कैद से छुटकारा हो सकता हैं।  वरना किसी की ता...

परमार्थ

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                   परमार्थ  परमार्थ  दुनिया के क़ायदे के मुवाफ़िक़ अच्छा वर्ताव करना या रस्मी पूजा , पाठ , तीर्थ, वर्त, परोपकार वगैरह करना परमार्थ नहीं है। दुनिया में आग लगा कर , जब इस तरह दीन और ग़रज़मन्द होगा जैसे भिखारी, तब परमार्थ बनेगा और दया आवेगी ।

परम आदरणीय बाबू संतदास महेशवरी जी का जीवन चरित्र ( पर्सनल असिस्टेंट टू हुजूर बाबूजी महाराज)

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                                                                                                     "राधास्वामी" जीवन चरित्र संतदास महेशवरी जी         •   परम पूज्य आदरणीय  संतदासजी माहेश्वरी  का जन्म- 1 जुलाई सन्-1910    में भारत के एक राज्य राजस्थान के अजमेर शहर के एक छोटे- से  मोहल्ले  खटोला   पोल  में  स्थित  उनके पूश्तैनी मकान में हुआ था । संतदासजी के  माता पिता  इनको  बहुत स्नेह करते थे । बचपन से ही ये पढने में और हर कार्य में बहुत ही निपुण थे । इनके दो भाई थे - सरनस्वरूप और भक्तस्वरूप  और  एक बड़ी बहन थीं जिनका नाम भक्तप्यारी था । संतदास जी  के  पिताजी का नाम तुलसीरामजी व माताजी का नाम रामसखीजी था पिता ...

वक़्त गुरु की पहचान क्या है ? राधास्वामी मत

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                   " वक़्त गुरु की पहचान " वक़्त गुरु की पहिचान   असल मे मनुष्य यानी जीव की ताक़त नहीं है कि वह सतगुरु को पहिचान सके । इस दुनिया के हाकिम अपनी हुकूमत से सब को डराते हैं और सतगुरु कभी अपने को प्रकट या जाहिर नहीं करते हैं बल्कि इस संसार में साधारण जीवों की तरह से ही बरतते हैं । इस वजह से जिस पर उनकी दया है वही जीव सतगुरु को पहिचान सकता है दूसरे जीव की ताक़त नहीं है कि वह सतगुरु को पहिचान सके । और जो कोई जीव चाहे कि सतगुरु की पहिचान कर ले और जो बातें कि ग्रन्थों और बानियों में लिखी हैं, उनसे विधि मिलावे तो हरगिज़ नही मिलेगी और पहिचान भी न होगी उसको चाहिये कि कोई दिन उनका संग करे तब पहिचान आवेगी और कोई उपाय पहिचान करने का नहीं है ।  कि एक वक़्त में दो संत सतगुरु नही हो सकते । इस पृथ्वी पर गुरु हमेशा मनुष्य यानी नर रूप में मौजूद हैं । और यह ज़रूरी नहीं है कि हर वक़्त प्रकट रहे । सतगुरु की पहिचान उसको होगी जो इस संसार की तापों में तप रहा है और और जो उन तापों को सुख रूप जानता है, वह कभी सतगुरु क...

राधास्वामी मत ख़ुलासा उपदेश - 2

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                           अन्तरी भेद कुल स्थानों का   /2019/06/radhasoami-mat-khulasa-updesh.html   Radhasoami Mat Khulasa  Updesh -2 पहिला  यानी  धुर  स्थान  पहिला  यानी  धुर  स्थान  सब  से  ऊँचा  और बड़ा  है  कि  जिस  का नाम स्थान भी  नहीं कहा  जाता  है,  उसको राधास्वामी  अनामी और अकह कहते हैं । यह आदि और अन्त सब का  है और कुल्ल का मुहीत यानी सब उसके घेर में हैं  और  हर  जगह  इसी  स्थान  की   दया और शक्ति अंश रूप से काम दे रही है और आदि में इसी स्थान से  मौज़ उठी और शब्द रूप होकर नीचे  उतरी । यह  स्थान  परम  संतों  का  है । सिवाय  बिरले  संतों  के  यहाँ  और  कोई नहीं पहुँचा और जो  पहुँचा उसी का नाम परम संत है । राधास्वामी  पद के नीचे दो स्थान बीच में छोड...

चैतन्य शक्ति का तथाकथित प्राकृतिक । शक्तियों से भिन्नत्व

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     चैतन्य शक्ति का तथाकथित प्राकृतिक । शक्तियों से भिन्नत्वव । चैतन्य शक्ति का तथाकथित प्राकृतिक । शक्तियों से भिन्नत्वव  इस बात के कहने की कोई ज़रूरत ही नहीं है कि  सुरत  की  चैतन्य  शक्ति  अन्य  प्राकृतिक शक्तियों  की   मिलौनी  का  नतीजा  नहीं  है । अकली  और  इल्मी  तौर पर भी इस तरह का नतीजा  निकालना  कुदरत  की  दूसरी ताकतों की  मौजूदा  हालत   के   खिलाफ  पड़ता   है क्योंकि इस दुनिया में एक भी ताकत ऐसी नहीं है  जिसका ज़हूर अनेक ज्ञात रूपों में होता हो और  रचना  में  उस  ताकत का आधारस्वरूप कोई  निज  का भंडार न हो । यही बात चैतन्य शक्ति  के लिये भी लागू होनी चाहिए । नीचे दी हुई  मिसाल  से  इस  कथन  की  पुष्टि  होगी । मोमबत्ती   जलाई   जावे   तो   उसमें   से   लौ निकलती  है । ...

हिदायतनामा राधास्वामी मत

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                                       ॥ हिदायतनामा  ॥ बीच बयान सुहबत और ख़िदमतगुज़ारी मुर्शिद कामिल  के और शरह दरजात फ़क़ीरी के और जिस में उपदेश शब्द के  अभ्यास का और भेद शब्द  मार्ग और  उसके मुक़ामात का भी बर्णन किया है । Radhasoami Mat Hukumnama जिन लोगों को  शौक़ मिलने मालिक कुल का है  और  तहक़ीक़ात   मज़हब की मंजूर है कि कौन  सा  मज़हब सब  से बाला‍‌ है और तरीक़ भी  उसका  बहुत सीधा चाहते हैं उन के वास्ते यह कलाम कहा  जाता है।  उनको चाहिये कि कुछ  दुनिया  की मुहब्बत  कम  करें  याने ज़र और  ज़न  और  औलाद  की  चाह तक़दीर के हवाले  करके   औवल   सुहबत  फ़क़ीरों   की मुक़द्दम  रक्खें । फ़क़ीरों में सुहबत उस फ़क़ीर की करें जो शाग़िल  शग़ल  सुल्तानुलअज़कार का  होवे  या   शग़ल...